مجموعه اس ام اس های ماه مبارک رمضان 1391
آمد گه آمرزش و شهرُ الله عظمی ***** توفیق خدایا، تو ز ما سلب مفرما
شد باز در رحمت خالق به روی خلق ***** چون ماه مبارک ز افق گشت هویداماه رمضان است صفا آمده است ***** بر خانه دل نور ضیا آمده است
از سفره ما بوی بهشت می آید ***** این سفره ز درگاه خدا آمده است
بـاز هـوای سحرم آرزوست ***** خلوت و مـژگان تـرم آرزوست
شکوه ی غربت نبرم این زمـان ***** دست تو و روی تو ام آرزوستیا اله الخلق یا رب الفلق ***** ای خدای انجم و شمس و شفق
از تو می خواهم در این ماه شریف ***** چشم پوشیدن ز جرم ما سبق
رمضان آمد و روان بگذشت / بود ماهی به یک زمان بگذشت شب قدری به عارفان بنمود / این معانی از آن بیان بگذشت . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- مارا به دعا کاش نسازند فراموش رندان سحرخیز که صاحب نفسانند . . . فرا رسیدن ماه مبارک رمضان بر شما مبارک -------------------------------------------------------------------------------------------------- حلول ماه مبارک رمضان ، بهار قرآن ، ماه عبادتهای عاشقانه نیایشهای عارفانه و بندگی خالصانه را به شما تبریک عرض میکنم . . . التماس دعا ----- ![]() روزه ، تمرین کلاس زندگی / درس ایثار و خلوص و بندگی روزه ، زنجیر هوا گسستن است / دیو و بت های درون بشکستن است . . . فرا رسیدن ماه رمضان بر شما مبارک -------------------------------------------------------------------------------------------------- روزه یعنی نفس خود پاک کن / قلب ابلیس درونت چاک کن راه پرواز است سوی آسمان / ماه گردیدن بسان عاشقان التماس دعا -------------------------------------------------------------------------------------------------- السلام علیک یا شهر الله الاکبر و یا عید اولیائه در ماه پر خیر و برکت رمضان برایتان قبولی طاعات و عبادات را آرزومندم . . . التماس دعا -------------------------------------------------------------------------------------------------- ماه در خودنگری و خودکاوشی / لب فرو بستن ، نگفتن ، خاموشی درک مسکین از دل و جان کردن است / زندگی همچون فقیران کردن است . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- ماه رمضان شد، مى و میخانه بر افتاد / عشق و طرب و باده، به وقت سحر افتاد افطار به مى کرد برم پیر خرابات / گفتم که تو را روزه، به برگ و ثمر افتاد با باده، وضو گیر که در مذهب رندان / در حضرت حق این عملت بارور افتاد -------------------------------------------------------------------------------------------------- هرچه داریم از خداست و هرچه توان داریم برای خدا باید خرج کنیم. با ادب خاص خود وارد این مهمانی بی مانند بشویم . . . ماه رمضان بر شما مبارک -------------------------------------------------------------------------------------------------- روزه هنگام سوال است و دعا / پر زدن با بال همت تا خدا شهر یکرنگی و بی آلایشی / ماه تقصیر و گنه فرسایشی عاشقان معشوق خود پیدا کنند / تا سحر در گوش او نجوا کنند درد خود گویند با درمان خویش / با طبیب و یا انیس جان خویش . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- ماه رمضان، ماه مفروش کردن قدوم شب قدر با اشکهای شوق برای درک «زیباترین لحظهء حیات انسانی» است . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- شهر رمضان الذی انزل فیه القرآن (ماه مبارک رمضان، ماه دوری از گناهان، ماه بندگی مبارکتان باد.) -------------------------------------------------------------------------------------------------- ![]() به عاصیان وعده ی رحمت رسید ماهی سرشار از برکت و رحمت و عبادت های پذیرفته شده برایتان آرزومندم . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- حکمت روزه داشتـن بگـذار / باز هم گفته و شنیده شود صبرت آمــوزد و تسلط نفـس / و ز تو شیطان تو رمیده شود . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- ماه رمضان آمد، آن بند دهان آمد / زد بر دهن بسته تا لذت لب بیند آمد قدح روزه، بشکست قدح ها را / تا منکر این عشرت بی باده طرب بیند . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- ای روزه داران اگر چنین می خواهید ، دهان از آنچه غیر خدایی است ببندید و چشم را به آنچه شیطانی است نگشایید و گوش را آلوده هر زمزمه پلید نسازید و حتی خیال باطل را هم از دروازه دلها بزدایید . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- ای دوست ز رحمت دل اگاهم ده / در ماه دعا سیر الی اللهم ده ماه رمضان و ماه مهمانی توست / در محفل مهمانی خود راهم ده . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- رمضانا تو بهترین ماهی / چون که ماه ضیافت اللّهی خوش عمل هر که بود در رمضان / ترک منکر نمود در رمضان . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- رمضان شهر عشق و عرفان است / رمضان بحر فیض و احسان است رمــضــــان، مــاه عــتــرت و قــرآن / گــــاه تــــجدید عهد و پیمان است . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- در خلوت شب ز حــق صـدا می آید / از عطر سحر بوی خدا می آید با گوش دگر شنو به غوغای سکوت / کز مرغ شب ، آواز دعا می آید . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- ای در غرور نفس به سر برده روزگار / برخیز ، کارکن ، که کنونست وقت کار ای دوست ! ماه روزه رسید و تو خفتهای / آخر زخواب غفلت دیرینه سر برآر . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- حکمت روزه داشتن بگذار / باز هم گفته و شنیده شود صبرت آموزد و تسلط نفس / و ز تو شیطان تو رمیده شود . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- یا اله الخلق یا رب الفلق / ای خدای انجم و شمس و شفق از تو می خواهم در این ماه شریف / چشم پوشیدن ز جرم ما سبق . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- رمضان ماه مناجات و دعا / رمضان پر بود از شور و صفا ماه خالص شدن از کبر و ریا / رمضان ماه رسیدن به خدا . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- باز آى و دل تنـگ مرا مونس جان بـاش / وین سوخته را محـرم اســرار نهان بـاش زان باده که در میکده عشـق فروشــند / ما را دو سه ساغر بده و گو رمضان باش . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- آمدیم از سفر دور و دراز رمضان / پی نبردیم به زیبایی راز رمضان هر چه جان بود سپردیم به آواز خدا / هر چه دل بود شکستیم به ساز رمضان . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- رمضــان چــشمــه عـطــای خـــدا / ماه عفو و گذشت و غفــران است رمــضــان رهــنـــمــا و راه گــشــا / بهــر گــم گـشتگان حـیــران است . . . -------------------------------------------------------------------------------------------------- کاش در این رمضان لایق دیدار شویم. *** سحری با نظر لطف تو بیدارشویم -------------------------------------------------------------------------------------------------- به غضنفرمیگن پاشو سحره. میگه بزار بخوابم.خودم فردا بهش زنگ میزنم -------------------------------------------------------------------------------------------------- به حیف نون میگن تو که روزه نمی گیری، چرا سحری می خوری؟ می گه نماز که نخونم،... روزه که نگیرم... سحری هم نخورم؟ بابا مگه من کافرم؟ -------------------------------------------------------------------------------------------------- چه جمعه ها که یک به یک غروب شد نیامدی... چه بغض ها که در گلو رسوب شد نیامدی تمام طول هفته را در انتظار جمعه ام... دوباره صبح، ظهر، غروب شد نیامدی اللهم عجل لولیک الفرج. -------------------------------------------------------------------------------------------------- آمد رمضان هست دعا را اثری دارد دل من شور و نوای دگری ما بنده عاصی و گنهکار توییم ای داور بخشنده بما کن نظری -------------------------------------------------------------------------------------------------- ماه مبارک آمد، ای دوستان بشارت کز سوی دوست ما را هر دم رسد اشارت آمد نوید رحمت، ای دل ز خواب برخیز باشد که باقی عمر، جبران شود خسارت -------------------------------------------------------------------------------------------------- امام صادق-ع: خواب روزه دار عبادت، خاموشی او تسبیح، عمل وی پذیرفته شده و دعای او مستجاب است." -------------------------------------------------------------------------------------------------- فرا رسیدن ماه ضیافت الهی بر شما و خانواده محترم مبارک باد -------------------------------------------------------------------------------------------------- حلول ماه مبارک رمضان، ماه رحمت و برکت و غفران مبارک باد. -------------------------------------------------------------------------------------------------- آمد گه آمرزش و شهرُ الله عظمی توفیق خدایا، تو ز ما سلب مفرما -------------------------------------------------------------------------------------------------- شد باز در رحمت خالق به روی خلق چون ماه مبارک ز افق گشت هویدا مژده که شد ماه مبارک پدید -------------------------------------------------------------------------------------------------- به عاصیان وعده ی رحمت رسید ماهی سرشار از برکت و رحمت و عبادت های پذیرفته شده برایتان آرزومندم ![]() |
حضرت امام خمینی(ره) با طرح دیدگاهها و نظرات بدیع خود، باب جدیدی را در حوزة مهدویت و انتظار گشود و شاخصهای رویکرد مهدوی را دستخوش دگرگونی و تغییر اساسی ساخت. مطالعة اقوال و آثار ایشان نشان میدهد که بر اساس دیدگاه ایشان این شاخصهها عبارتند از:
در باب حوادث آخرالزمان، در بین احادیث به احادیثی برمی خوریم که در آنها از قبیلهای به نام «بنیکلب» صحبت شده و وقایع مهمی به این قبیله نسبت داده شده است. قبیلة بنیکلب که در روایات از اعضای آن به عنوان «داییان سفیانی» نیز سخن به میان آمده است، نقش مهمی در وقایع آخرالزمان و زمان نزدیک به ظهور بازی میکنند.
شناخت تحولات منطقه و جهان و بررسی آنها از
دیدگاه روایات اسلامی، از اهمیت بسیاری برخوردار است. این مهم از یک سو ما
را گوش به زنگ کرده و متوجه مسئولیتی که در جهت زمینه سازی برای ظهور آقا
امام زمان(ع) داریم مینماید و از سوی دیگر در مقابله با پیشامدهای سخت
آخرالزمان و ایام نزدیک ظهور آن حضرت یاری میکند.
امیرمؤمنان(ع) ضمن روایتی طولانی نقل شده است: «و آن را نشانهها و علامتهایی است و خروج سفیانی با درفش سرخ همراه است و فرمانده آن مردی از قبیله بنیکلب است.3
عجبا! تو که نه به مشرق رفته اى و نه به مغرب رفته اى، نه به داخل زمین فرو رفته اى و نه به آسمان بالا رفته اى، و نه بر صفحه آسمانها عبور کرده اى تا بدانى در آنجا چیست، و با آنهمه جهل و ناآگاهى، باز منکر مى باشى (تو که از موجودات بالا و پائین و نظم و تدبیر آنها که حاکى از وجود خدا است، ناآگاهى، چرا منکر خدا مى باشى؟) آیا شخص عاقل به چیزى که ناآگاه است، آن را انکار مى کند؟
در کشور مصر، شخصى زندگى مى کرد به نام عبدالملک، که چون پسرش عبدالله نام داشت، او را ابوعبدالله (پدر عبدالله ) مى خواندند، عبدالملک منکر خدا بود، و اعتقاد داشت که جهان هستى خود به خود آفریده شده است، او شنیده بود که امام شیعیان، حضرت صادق (ع ) در مدینه زندگى مى کند، به مدینه مسافرت کرد، به این قصد تا درباره خدایابى و خداشناسى، با امام صادق (ع ) مناظره کند وقتى که به مدینه رسید و از امام صادق (ع ) سراغ گرفت، به او گفتند: امام صادق (ع ) براى انجام مراسم حج به مکه رفته است، او به مکه رهسپار شد، کنار کعبه رفت دید امام صادق (ع ) مشغول طواف کعبه است، وارد صفوف طواف کنندگان گردید، (و از روى عناد) به امام صادق (ع ) تنه زد، امام با کمال ملایمت به او فرمود:
گفتوگو با حجتالاسلام و المسلمین شیخ علی کورانی محقق و نویسنده
جهان در زمان ظهور چه وضعیتی دارد؟
بحرانها، جنگها و شورشهای عصر ظهور چه مناطقی از جهان را بیشتر تحت تأثیر قرار میدهد؟
در مدت زمان قبل از ظهور چه سرزمینهایی دستخوش آشوب و بحران خواهند بود؟
آیا ما میتوانیم کشتارهای کنونی شیعیان را در نهایت زمینهساز شورش سفیانی بدانیم؟
... پس چون قیام کند جمع میشوند به سوی او یارانش، که به شمار اصحاب بدر و اصحاب طالوتند و ایشان 313 نفرند که همة آنها شیرانی هستند که از کمینگاههای خود بیرون آیند مانند پارههای آهن اگر ایشان اراده کنند که کوههای سخت را از جا بکنند هر آینه آنها را از جاهای خود میکنند، پس ایشانند کسانی که به یگانگی، خدا را پرستش میکنند.
از ویژگیهای خانواده مهدی باور، شناخت آسیبها و آفتهای نگه داشتن خانوادگی در دوران آخرالزّمان، حفاظت و پاک نگه داشتن حریم خانه و خانواده از آسیبها و آفات آخرالزّمانی و جایگزینی «فرهنگ انتظار» در برابر «فرهنگ ابتذال» است.
«در آخرالزّمان، خواهی دید که پدران و مادران از فرزندان خود به شدّت ناراضی اند و عاقّ والدین شدن رواج یافته است.1 حرمت پدران و مادران سبک شمرده میشود.2 فرزند به پدرش تهمت میزند، پدر و مادرش را نفرین میکند و از مرگ آنها مسرور میشود.3 در آن هنگام، طلاق و جدایی در خانوادهها بسیار خواهد شد.4 در آن زمان، فتنه ها چونان پارههای شب تاریک، شما را فرا میگیرد و هیچ خانهای از مسلمانان در شرق و غرب عالم نمیماند؛ مگر اینکه فتنهها در آن داخل میشوند.»5
زنان در آن زمان، بی حجاب و برهنه و خودنما خواهند شد.7 آنان در فتنهها داخل، به شهوتها علاقهمند و با سرعت به سوی لذّتها روی میآورند.8 خواهی دید که زنان با زنان ازدواج میکنند.9 درآمد زنان از راه خودفروشی و بزهکاری تأمین میگردد.10 آنان حرامهای الهی را حلال میشمارند و بدین سان در جهنّم وارد و در آن جاودان میگردند.
11
«مرد از همسرش انحرافات جنسی را میبیند و اعتراضی نمیکند. از آنچه از طریق خودفروشی به دست میآورد، میگیرد و میخورد. اگر انحراف سراسر وجودش را فرا گیرد، اعتراض نمیکند، به آنچه انجام میشود و در حقّش گفته میشود، گوش نمیدهد. پس چنین فردی دیّوث است (که بیگانگان را بر همسر خود وارد میکند).»12
«(در آخرالزّمان) تمام همّت مرد، شکم او و قبلهاش، همسر او و دینش، درهم و دینار او خواهد بود.13 مرد از همسرش اطاعت میکند، ولی پدر و مادرش را نافرمانی میکند.14 در آخرالزّمان زن را ببینی که با خشونت با همسرش رفتار میکند، آنچه را که او نمیخواهد، انجام میدهد، اموال شوهرش را به ضرر وی خرج میکند.»15
روزگاری که دینتان: پول، قبلهگاهتان: زنان و کاسبانتان: رباخوار میشوند.
غربت
چیست؟ پیامبر(ص) فرمود: «اسلام غریب ظهور کرد و در آخرالزّمان نیز غریب
خواهد شد. چه بسیارند مسلمانان که از اسلام جز پوستهای وارونه بر خویش
ندارند.»
از علی(ع) پرسیده شد: آن زمان چه زمانی است؟ پاسخ گفته شد:
«زمانی است که پستفطرتان همه جا را پر میکنند؛ بزرگواران کمیاب میشوند؛
روزگاری است که پادشاهان چون درّندگان، تهیدستان، طعمه آنانند؛ راستی غارت
میشود و دروغ، فراوان میگردد. مردمانشان با زبان، تظاهر به دوستی دارند؛
امّا در دل، دشمن هستند. گناه همه جا را فرا میگیرد و علنی به گناه افتخار
میکنند و اسلام را چون پوستینی واژگونه میپوشند.»
1
احادیث بیشماری از پیامبر اکرم(ص) در
جلد 22 «بحارالانوار»، صفحه 453 و «کنزالاعمال» درباره روزگار غربت اسلام
در آخرالزّمان از شیعه و اهلسنّت نقل شده که در اینجا به برخی از آنها
اشاره میکنیم:
شخصیّتهای بزرگ، حیلهگر خوانده میشوند.
«روزگاری
خواهد آمد که دین خدا تکّه تکّه خواهد شد. سنّت من در نزد آنان بدعت و
بدعت در نزد آنان سنّت باشد، شخصیّتهای بزرگ در نزد آنها حیلهگر خوانده
میشوند و اشخاص حیلهگر در نزد مردم، با شخصیّت و وزین خوانده شوند.
مؤمن
در نزد آنان حقیر و بیمقدار میشود و فاسق به پیش آنها محترم و ارجمند
باشد، کودکانشان پلید و گستاخ و بیادب و زنانشان بیباک و بیشرم و بیحیا
شوند، پناه بردن به آنها خواری و اعتماد به آنان ذلّت و درخواست چیزی از
آنها نمودن، جامه درویشی به تن کردن و مایه بیچارگی و ننگ است.
در آن هنگام خداوند، آنان را از باران به هنگام، محروم سازد و در وقت نامناسب، بر آنها ببارد.»
اگر در جمع آنها باشی به تو دروغ گویند.
«زمانی
بر مردم بیاید که چهرههایشان، چهرههای آدمیان ولی دلهایشان، دلهای
شیاطین باشد، بهسان گرگان درّنده، خونریز باشند. از منکرات اجتناب نکنند،
پیوسته به کارهای ناپسند خویش ادامه دهند، اگر در جمع آنها باشی به تو
دروغگویند و اگر خبری برایشان بازگویی تو را دروغگویی شناسند و چون از
آنها غایب باشی، غیبتت کنند. افراد بد، بر آنان مسلّط شود که آنان را به
انواع عذاب معذّب دارند، نیکانشان دعا کنند ولی اجابت نشود.»
شکمهاشان خدایان آنها و زنانشان قبلهگاهشان و پولشان دینشان
در
جایی دیگر رسول خدا(ص) فرمود: «زمانی بر مردم بیاید که شکمهاشان، خدایان
آنها شود و زنانشان، قبلهگاهشان و پولشان، دینشان شود و کالاهای دنیوی را
مایه شرف، اعتبار و ارزش خویش دانند.
از ایمان جز نامی و از اسلام جز
آثاری و از قرآن جز درس نماند. ساختمانهای مسجدهایشان آباد باشد؛ ولی
دلهایشان از جهت هدایت خدا خراب شود.
در آن روزگار است که خداوند، آنها
را به چهار بلا مبتلا سازد. نخست: تجاوز به ناموسشان؛ دوم: هتک حرمت از
ناحیه زورمندان و ثروتمندانشان؛ سوم: خشکسالی؛ چهارم: ظلم و ستم از جانب
زمامداران و قاضیان.
اصحاب از سخنان آن حضرت سخت به شگفت آمدند و گفتند:
یا رسول الله! مگر آنها بتپرست هستند؟ پیامبر(ص) فرمود: «آری، هر پول و
درهمی به نزد آنها بتی است که در حدّ پرستش به آن تعلّق خاطر دارند.
آنچنان از علما بگریزند که گوسفند از گرگ گریزد.»
از پیامبر خدا(ص) در منابع شیعه و اهل تسنّن روایت شده است که در جایی دیگر فرمود:
«روزگاری
بیاید که مردمشان آنچنان از علما بگریزند که گوسفند از گرگ گریزد. در آن
هنگام، خداوند آنها را به سه بلا دچار سازد: نخست آنکه برکت از مالشان
بگیرد؛ دوم: ستمگران را بر آنها مسلّط سازد و سوم آنکه بیایمان از دنیا
بروند.»
یکی از اصحاب از پیامبر(ص) پرسید: یا رسولالله! دین مردمشان چگونه خواهد بود؟
پیامبر(ص)
فرمود: «زمانی بر مردم بیاید که هر کس دین خویش را به سختی حفظ کند.
دینداریشان بهسان کسی ماند که آتش در دست خود نگه دارد.»
از قرآن جز رسم الخطّی و از اسلام جز نامی برای مسلمانان نماند.
در
جایی دیگر پیامبر(ص) فرمود: «زمانی برسد که از قرآن، جز رسم الخطّی و از
اسلام، جز نامی برای مسلمانان نماند، آنچنانکه گروهی در جهان به دین خدا
خوانده شوند در حالیکه همین گروه از هر کسی از اسلام دورتر باشند.
مسجدهاشان از حیث ساختمان، آباد ولی از نظر هدایت، خراب باشد.
در میان
مردمانشان قرآن و اهل آن در اقلّیت باشند. مؤمنانشان در میان مردم باشند؛
ولی در میان آنها نباشند، با مردم باشند؛ ولی به راستی با مردم نباشند،
زیرا هدایت با ضلالت همراه نیست گرچه در کنار یکدیگر باشند.»2
به اندک نانی پیش هر کسی کرنش کنند
پیامبر(ص)
در اواخر عمر خود اصحاب را جمع کردند و فرمودند: «زمانی بر مردم بیاید که
اخلاق انسانی از آنان رخت بربندد؛ چنانکه اگر نام یکی را بشنوی به از آن
بود که آن را ببینی یا اگر او را ببینی به از آن است که او را بیازمایی.
چون او را بیازمایی، حالاتی زشت و ناروا در او مشاهده کنی.
دینشان پول و
قبلهگاهشان زنانشان شود. برای رسیدن به اندک نانی پیش هر کسی کرنش کنند
نه خود را در پناه اسلام دانند و نه به کیش نصرانی زندگی کنند. بازرگانان و
کاسبانشان رباخوار و فریبکار و زنانشان خود را برای نامحرمان بیارایند. در
آن هنگام اشرارشان بر آنها چیره گردند و هرچه دعا کنند به اجابت نرسد.»3
آنچنان به قوانین اسلامی بیاعتنا شوند که ...
«روزگاری
خواهد آمد که مردمانشان به پراکندگی مصمّم باشند و از هماهنگی و
اتّفاقنظر و اتّحاد به دور شوند. آنچنان به قوانین اسلامی بیاعتنا بشوند
که گویی آنان خود پیشوای قرآن بودند نه قرآن پیشوای آنها. از حق جز نامی
نزد آنها نمانده باشد و از قرآن جز خط و ورقی نشناسند. بسا یکی در درس قرآن
و تفسیر وارد شود، هنوز جا خوش نکرده از دین خارج شود و چون در آخرالزّمان
دینتان دستخوش افکار گوناگون و روایات جدید شود، کمتر کسی از شماست که
دینش را حفظ کند.»
هنگامی که معیشت جز با گناه تأمین نگردد
یکی از اصحاب از رسول خاتم(ص) پرسید، دین خدا چگونه خواهد شد؟
پیامبر(ص)
فرمود: «زمانی بر مردم بیاید که هیچ دیندار، دینش برایش سالم نماند جز
اینکه از قلّه کوهی بگریزد یا از سوراخی به سوراخ دیگر پناه برد چون روباه
که با بچّههایش چنین کند و این آخرالزّمان باشد.»4
هنگامی که معیشت جز با گناه تأمین نگردد
چون
این وضع پیش آید عزب بودن و تجرّد حلال شود، در آن روزگار است که مرد به
دست پدر و مادرش تباه و گمراه شود و اگر پدر و مادر نداشته باشد به دست زن و
فرزندش و اگر زن و فرزند نداشته باشد، چه بسا هلاکت و تباهیاش به دست
خویشان و همسایگانش باشد، که او را به تهیدستی و فقر سرزنش کنند و بترسانند
و تکالیفی بر او نهند که وی از عهده آن بر نیاید تا گاهی که او به
پرتگاههای هلاکت سقوط کند.
در آخرالزّمان فریبکارانی بیایند که حدیثهایی
نو و روایتهایی جدید از دین بر شما بخوانند
و
نیز از خاتم الانبیاء(ص) روایت شده است که فرمود: «در آخرالزّمان
دغلبازان و فریبکارانی بیایند که حدیثهایی نو و روایتهایی جدید از دین
بر شما بخوانند، آنچنان که نه شما و نه پدرانتان چنین حدیثهایی نشنیده
باشید. پس دوری گزینید از آنها. مبادا به دام تزویر و فریبشان بیفتید.»5
از
علیّ بن ابی طالب(ع) درباره آخرالزّمان پرسیده شد: آیا در آن زمان مؤمنانی
وجود دارند؟ فرمود: «آری.» باز پرسیده شد: آیا از ایمان آنان بر اثر
فتنهها چیزی کاسته میشود؟ فرمود: «نه، مگر آن مقدار که قطرات باران از
سنگ خارا بکاهد؛ امّا آنان در رنج به سر برند.»
امیرالمؤنین(ع) فرمود:
«زمانی بر مردم بیاید که مقرّب نباشد جز به سخنچینی و جالب شمرده نشود جز
به فاجر بودن و تحقیر نشوند جز افراد با انصاف، در آن زمان دستگیری
مستمندان زیان به شمار آید و صله رحم لطف و بزرگواری به شمار آید.»6
امام
سجّاد(ع) فرمود: «چون خداوند میدانست در آخرالزّمان اهل فکر دقیق النّظر
خواهند آمد، از این جهت قل هو الله احد و آیاتی از سوره حدید را نازل
کرد.»7
بر شما باد که همچون بادیه نشینان و زنان دینداری کنید
امام
صادق(ع) فرمود: «چون قائم ما قیام کند خداوند آنچنان نیرویی به چشم و گوش
پیروانش داده که به پیک و پیامآور نیازی نداشته باشند و به هر کجای جهان
که باشند امام خود را ببینند و سخنش را بشنوند.»8
پیامبر(ص) فرمود:
«این دین مدام برپا خواهد ماند و گروهی از مسلمانان از آن دفاع کنند و در
کنار آن بجنگند تا قیامت بر پا شود.» و فرمود: «در هر عصر و زمانی گروهی از
امّتم مدافع احکام خدا باشند و از مخالفان باکی نداشته باشند.»9
در جای
دیگری فرمودند: «چون در آخرالزّمان دینتان دستخوش افکار گوناگون گردد، بر
شما باد که همچون بادیهنشینان و زنان دینداری کنید که به دلهایشان
دیندارند و دین آنها از آلایش به افکار مصون ماند.»10
پینوشتها:
1. نهج البلاغه. خ 108.
2. بحارالانوار، ج 52، ص190.
3. همان، ج 77، ص369.
4. کنزالاعمال، ح 31008.
5. کنزالاعمال، حدیث 290324.
6. نهجالبلاغه، ح 102.
7. بحارالانوار، ج 60، ص 18.
8. بحارالانوار، ج ۳۶، ص ۴۵.
9. کنزالاعمال، ح 34499 و34500.
10. بحارالانوار، ج 52، ص111.
کسی می آید از یک راه دور آهسته آهسته
شبی هم می کند زینجا عبور آهسته آهسته
غبار غربت از رخسار غمگین دور می سازد
و ما را می کند غرق سرور آهسته آهسته
دل دریایی ما را به دریا می برد روزی
به سان ماهی از جام بلور آهسته آهسته
ازین رخوت رهایی می دهد جان های محزون را
درون ها می شود پر شوق و شور آهسته آهسته
نسیم وحشت پاییز را قدری تحمل کن
بهار آید اگر باشی صبور آهسته آهسته
کسی می آید و می گیرد احساس خدایی را
ز انسان های سرشار از غرور آهسته آهسته
فنا می گردد این تاریکی و محنت ز دنیامان
ز هر سو می دمد صدگونه نور آهسته آهسته
به سر میآید این دوران تلخ انتظار آخر
و ناجی می کند اینجا ظهور آهسته آهسته
ز الطاف خداوندی حضورش را تمنا کن
که او مردانه می یابد حضور آهسته آهسته
بیانیه هیئت انصارالمهدی ایردموسی در محکومیت جنایات و فجایع ضد بشری در میانمار
«... وَإِنِ اسْتَنصَرُوکُمْ فِی الدِّینِ فَعَلَیْکُمُ النَّصْرُ... »
اگر در راه دین از شما یاری طلبیدند بر شما واجب است که آنها را یاری کنید. انفال/ 72
خشونت علیه مسلمانان در میانمار که با حمایت دولت مردان این کشور صورت می
گیرد و نیز نادیده گرفتن این خشونت ها از جانب رسانه های مدعی حقوق بشر هر
انسان آزاده خواهی را متاثر می کند. در شرایطی که دین اسلام روز به روز در
غرب و شرق نفوذ می کند روشن است که دولت مردان کشور میانمار از این پدیده
نگران باشند و مسلمانانی را که در این کشور به دنیا آمده اند اتباع خارجی
قلمداد کنند. بر همگان واضح است که این مسلمان کشی ها از ترس نفوذ اسلام
عزیز است که در پرتو آموزه های آن امروز می بینیم که مردم مسلمان بسیاری از
کشورها بر علیه حاکمان ظالم و مستبدشان قیام کرده اند. ما اعضاء و خادمان هیئت انصارالمهدی (عج) ایردموسی از تمام آزادی خواهان جهان می خواهیم بر علیه این خشونت ها
قیام کرده و با فریاد اعتراض خود به یاری مسلمانان مظلوم میانمار بشتابند.
دیده بگشا ای به شهد مرگ نوشینت رضا
دیده بگشا بر عدم، ای مستی هستی فزا
دیده بگشا ای پس از سوءالقضا حسن القضا
دیده بگشا از کرم، رنجور دردستان، علی!
بحر مروارید غم، گنجور مردستان، علی!
دیده بگشا رنج انسان بین و سیل اشک و آه
کِبر پَستان بین و جام جهل و فرجام گناه
تیر و ترکش، خون و آتش، خشم سرکش، بیم چاه
دیده بگشا بر ستم؛ بر این فریبستان، علی!
شمع شبهای دژم، ماه غریبستان، علی!
دیده بگشا! نقش انسان ماند با جامی تَهی
سوخت لاله، مُرد لیلی، خشک شد سَرو سَهی
زآ گهی مان جهل ماند و جهل ماند از آگهی
دیده بگشا ای صنم، ای ساقی مستان، علی!
تیره شد از بیش و کم آیینۀ هستان، علی!
در آن روز سخت که «لکل امرء یومئذ شأن یغنیه» [1] برای هر کس آنچنان گرفتاری است که بخود مشغول است. تنها فاطمه است که به فکر هواداران خویش است.
او در میدان قیامت حرکت می کند تا به محازات عرش الهی می رسد، عرش به لرزه درمی آید... از طرف خداوند پیامی در می پیچد که: ای محبوبه من و ای دختر حبیب من، هر چه می خواهی داده می شود. شفاعت کن پذیرفته می شود...
فاطمه می گوید: «الهی و سیدی! شیعتی و ذریتی و شیعتی و شیعه ذریتی و محبی ذریتی»
خدای من! شیعه و فرزندانم، و شیعه و پیروان فرزندانم و دوستدارانشان را دریاب.
آنگاه، ندایی در فضای قیامت می پیچد که: کجایند فرزندان فاطمه! کجایند دوستداران فاطمه و دوستداران فرزندان وی؟ هواداران همه پاسخ می دهند. آنگاه فاطمه پیشاپیش، آنان را به سوی بهشت هدایت می کند [2] .
فاطمه به این بسنده نمی کند و اگر افرادی باشند که به واسطه اعمالشان نتوانسته باشند پاسخ بگویند یا از راه مانده اند. فاطمه اندکی درب جهنم توقف می کند و می گوید: «الهی و سیدی سمیتنی فاطمه و فطمت بی من تولانی و تولی ذریتی من النار و وعدک الحق و انت لا تخلف المیعاد» خدایا، مرا فاطمه نام نهادی تا هوادارانم و کسانی که ولایت ذریه ام را پذیرفتند از آتش حفظ کنی، وعده تو حق است و هرگز خلف وعده نمی کنی.
خداوند، گفتار فاطمه را تصدیق می کند، مجددا از فاطمه می خواهد تا شفاعت کند تا مقام فاطمه نزد پیامبران و فرشتگان و آدمیان روشن گردد. [3] .
شفاعت فاطمه در آن روز عام و شامل و حتمی است [4] و شرط آن، محبت فاطمه است، اما محبتی که مخفیگاه قلب را شکافته باشد و در میدان عمل تجلی کرده باشد.
لذا پیامبر (ص) در مورد شفاعت فاطمه (ع) فرمود:
دخترم فاطمه در قیامت بر مرکبی از نور سوار است سمت راست وی هفتاد هزار فرشته و دست چپش هفتاد هزار فرشته و پشت سرش هفتاد هزار فرشته در حرکتند، و زنان مومن امتم را به سوی بهشت رهبری می کند، زنانی که نماز پنجگانه شان را بخوانند، روزه شان را بگیرند و حجشان را بگذارند، و زکاتشان را بپردازند و از شوهرشان فرمان برند و عشق علی را نیز پاس دارند، اینان با شفاعت دخترم به بهشت درمی آیند زیرا او سرور زنان جهان است [5] .
محتوای این گزارش شامل بررسی میزان نفوذ ایران در شرق مدیترانه نظیر سوریه، لبنان، حزب الله، کناره باختری و نوار غزه - شامل حماس، جهاد اسلامی فلسطینی و گردانهای الاقصی - می شود. همچنین این گزارش میزان نفوذ و راهکارهای ایران برای افزایش نفوذ خود در سه کشور عراق، مصر و افغانستان را نیز تشریح می کند.
در بخشی از خلاصه اجرایی این گزارش آمده است: جمهوری اسلامی ایران از سال 2008 تا کنون با پیروی از یک استراتژی یکپارچه قدرت نرم، نفوذ خود را در سرتاسر منطقه گسترش داده که برای این منظور از ابزارهای سیاسی، اقتصادی و نظامی بهره برده است. بهار عربی در عین حال که چالشهایی برای تهران در خاورمیانه برانگیخته، فرصتهای جدیدی نیز اعطا کرده است.
در ادامه به مسئله اختلافات مذهبی در منطقه خصوصا عراق و روابط ایران با سوریه، تفوق حزب الله در صحنه سیاسی لبنان و تاثیر آن بر ایران، انقلاب در مصر و دستاوردهای آن برای ایران اشاره شده است. همچنین سیاستهای ایران در عراق را بسیار موفق دانسته که باعث شده ایران همزمان با حضور آمریکا و همسایگان عربی، نفوذ بی نظیری داشته باشد. تلاشهای ایران در همسایه شرقی اش یعنی افغانستان را چندان موفقیت آمیز ندانسته و عامل آن را نزدیکی حامد کرزای با ایالات متحده و ناتو عنوان می کند.
خلاصه اینکه نویسندگان گزارش بر این عقیده هستند که از سال 2007 به بعد، ایران از یک استراتژی پیروی نمود که همزمان ابزارهای قدرت نرم و سخت را به کار گرفته و موفق شده موقعیت تهران در منطقه را بهبود و تحکیم بخشد. به هر حال این گزارش اولا به دنبال اثبات وجود رویکرد قدرت هوشمند ایران در منطقه و ثانیا تببین زوایای این رویکرد است.
در پایان نیز به ایالات متحده و شرکایش در منطقه توصیه می کند که تنها به دنبال درک و فهم استراتژی منطقه ای ایران نباشند بلکه بایستی استراتژی منسجمی برای مقابله با استراتژی ایران به کار گیرند.
از انتخاب عکس این گزارش می توان فهمید سردار سلیمانی به نماد قدرت هوشمند ایران در منطقه تبدیل شده است.
اتفاقات بعد از ظهور
اتفاقاتى که در دوره ظهور امام مهدى(عج) مىافتد، بسیار است. با بهره مندى از روایات اهل بیت(ع) تنها به بیان چند رخداد مهم اشاره مىکنیم:
1- اعلان ظهور: اولین حادثهاى که بعد از ظهور امام زمان(ع) شکل مىگیرد، اعلام ظهور امام زمان(ع) است. ظهور حضرت به وسیله منادى آسمانى اعلام مىگردد، آن گاه حضرت در حالى که به کعبه تکیه داده است، با دعوت به حق، ظهور خود را اعلام مىدارد.(1) دعوت حضرت هم به منظور اعلام ظهور حضرت است و هم به منظور فراخوان عمومى جهت پذیرش حکومت جهانى. امام على(ع) فرمود: «هنگامى که منادى از آسمان ندا مىدهد: حق از آنِ آل محمد است و اگر طالب هدایت و سعادت هستید، به دامان آل محمد چنگ زنید، حضرت مهدى(عج) ظهور مىکند»(2)
2- رجعت: به مقتضای برخی روایات رجعت و بازگشت برخى از مؤمنان و پیامبران الهى مانند حضرت عیسى(ع)-که در رکاب حضرت مهدى(عج) خواهند بود و در قیام و مبارزه او با ستمگران شرکت دارند رجعت خواهد نمود، همچنین برخی صالحان ومو منان برای اینکه شاهد حکو مت آرمانی امام زمان باشد واز این حکو مت بهره ببردرجعت می نمایند. همانطور که برخی از ظالمان وجنایات کاران جهت اینکه عذاب شوند به دنیا رجعت می کنند
3- مبارزات امام زمان(عج): یکى از حوادث مهم که بعد از ظهور امام زمان(ع) به وجود مىآید، مبارزه امام با دشمنان و مخالفان ظهور است. برخى از افراد و گروهها حکومت عدالت گستر امام زمان(ع) را بر نمىتابند و با حضرت به جنگ مىپردازند. مخالفان امام را افراد و گروههاى مختلف تشکیل مىدهند(3) و سیاست امام در برابر آنها متفاوت است.
امام زمان(ع) نخست همگان را به دین و صلح فرا مىخواند و با مدارا با آنها رفتار مىنماید.
امّا دشمنان دعوت امام را نادیده مىگیرند و به جنگ با امام مىپردازند. امام با بهرهگیرى از همه قدرت و امکانات، با دشمنان برخورد مىکند، و جنگ سختى به وقوع مىپیوندد.(4) از جمله جنگ امام زمان(عج) با دجال(5) و سفیانى.(6)
4- پیروزى امام زمان(عج): در این درگیرىها سرانجام حضرت پیروز مىشود. در برخى روایات از پیروزى امام بر شرق و غرب،(7)، جنوب و قبله(8) گزارش شده است.
امام باقر(ع) فرمود: «حضرت قائم از ما است و فرمانروایى حضرت شرق و غرب را فرا مىگیرد».(9) از پیامبر اسلام(ص) گزارش شده است که حضرت مهدى(عج) لشکریانش را به سراسر زمین گسیل مىدارد.(10)
5- تشکیل حکومت جهانى و برچیده شدن مرزهاى جغرافیایى:
امام مهدى(عج) حکومت جهانى تشکیل مىدهد و مرزهاى جغرافیایى را بر مىچیند. این حکومت همان حکومت آرمانى موعود است که از آن در روایات گاهى به مدینه »فاضله«.(11) گاهى به جامعه مطلوب و گاهى به «دولت کریمه» یاد شده است.
حکومت جهانى امام زمان(ع) از مؤلّفهها و شاخصه هایى برخوردار است که تحقق هر کدام از آنها مىتواند یکى از حوادث بعد از ظهور امام زمان(ع) محسوب شوند، از جمله:
أ) گسترش عدالت:
یکى از ویژگىهاى حکومت امام زمان(ع) عدالت است. عدالت عنصر گم شدهاى است که همگان دنبال آن هستند. این گمشده در حکومت امام زمان تحقق پیدا مىکند. وهمه جهان را فرامی گیرد
پیامبر اسلام فرمود: «یملاء الأرض قسطاً و عدلاً بعد ما ملئتْ ظلماً و جوراً»؛(12) امام زمان(ع) حکومت را به گونهاى سازماندهى مىکند که دیگر واژه ستم از ذهنها رخت بر مىبندد و کسى به دیگرى ظلم نمىکند؛
ب) گزینش کارگزاران شایسته:
طبیعى است که حکومت آرمانى امام زمان(ع) که رهبرى آن را امام مصلح و پارسا بر عهده دارد، کارگزاران آن نیز از صالحان و پارسایان خواهند بود، از این رو در روایات آمده است که دولت امام زمان(ع) را برخى از پیامبران و جانشینان آنان و صالحان و از اصحاب پیامبر اسلام(ص) تشکیل مىدهند. حضرت عیسى(ع) به امام زمان(ع) مىگوید: »من به عنوان وزیر فرستاده شدهام؛ نه امیر و فرمانروا.(13)
6- رشد آگاهى و دانش:
یکى از حوادث بسیار مهم رشد دانش و صنعت در عصر امام زمان(ع) است. دوره ظهور دوران گسترش علم و دانایى است و مدینه فاضله اسلامى «مدینة العلم» است. با آمدن آن منجى همان گونه که ظلم جاى خود را به عدل و داد مىدهد، دانایى و فرزانگى جایگزین جهل و نادانى مىشود و جهان از نور عقل و دانش آکنده مىگردد.(14)
7- رشد عقل و خرد ورزى: در این دوره بشر به حاکمیت عقلانیت نایل مىگرددکه امروزه ازآن به عنوان رشدفکری وبلوغ سیاسی ویارشد خرد جمعی یاد می شود
در روایات آمده است که در عصر ظهور حضرت مهدى(عج) برکات خداوندى به بشر ارزانى داشته و دست رحمت ایزدى بر عقلهاى مردم کشیده مىشود و مردم از نظر عقل و بصیرت در وضع بى مانندى قرار مىگیرند.(15)
8- رفاه اقتصادى و معیشتى: به فرموده پیامبر اسلام(ص) در دوره حضور حضرت مهدى(عج) مردم به نعمت هایى نایل مىگردند که در هیچ زمانى سابقه ندارد. براى همگان برکات الهى از آسمان نازل مىشود و زمین چیزى از روییدنىهاى خود را پنهان نمىکند.(16)
سطح رفاه زندگى در این دوره به حدّى است که طبق روایات رسیده از امام صادق(ع) در این دوره فقیرى یافت نمىشود تا مردم زکات اموالشان را به او بدهند.(17)
9- برقرارى امنیت اجتماعى: در این دوره امنیت اجتماعى به نحو کامل برقرار مىگردد. به گونهاى که اگر زنى به تنهایى بخواهد از عراق به شام مسافرت نماید، در مورد امنیتش هیچ ترس و دلهرهاى ندارد.(18)
10- رشد تربیتى و شکوفایى فرهنگى و اخلاقى: در این دوره افراد به رشد تربیتى و اخلاقى و جامعه به بالاترین درجه تعالى و شکوفایى نایل مىگردند. امام على(ع) فرمود: «چون قائم ما قیام کند، کینهها از دلها زدوده مىشود».(19) امام باقر(ع) فرمود: «هنگامى که قائم ما قیام کند، خداوند قواى فکرى مردم را تعالى مىبخشد و اخلاق آنان را به کمال مىرساند».(20)
در روایتى دیگر از آن حضرت نقل شده است که «در دوره ظهور، دوستى و یگانگى بین مؤمنان در نهایت خود قرار مىگیرد، به گونهاى که هر کس نیازمند باشد، بدون هیچ ممانعتى از جیب دیگرى پول بر مىدارد (و دیگرى هم از این کار راضى است».(21)
براى اطلاع بیشتر در این مورد به کتاب عصر زندگى و چگونگى آینده انسان و اسلام، پژوهشى در انقلاب جهانى حضرت مهدى(عج)، تألیف محمد حکیمى مراجعه نمایید.
در مورد بعد از ظهور حضرت مهدى(عج)؛ یعنى مدتى که حضرت مهدى (عج) حکومت مىکند، نیز بعد از آن دوره تا برپایى قیامت، نمىتوان پاسخ قاطع و روشنى از روایات به دست آورد، چرا که در لابلاى روایات مدت حکومت حضرت مهدى(عج) نوزده سال و چند ماه،(22) هفتاد سال،(23) سیصد و نه سال،(24) آمده است.
در روایتى ذکر شده که بعد از حضرت مهدى(عج) فردى از اهل بیت سیصد و نه سال حکومت خواهد کرد.(25) و بعد قیامت برپا خواهد شد، یا یکایک امامان(ع) رجعت و حکومت مىکنند و سپس قیامت بر پا خواهد شد(26) و...
برخى از پژوهشگران اسلامى بیان داشتهاند: در مورد مدت حکومت حضرت مهدى(عج) اگر چه برخى روایات حد معیّنى را بیان کردهاند و دوران حکومت حضرت را به هفت یا نه سال محدود نمودهاند، لیکن این گونه روایات در منابع اهل سنّت ذکر شده، امّا عدهاى بدون تحقیق این گونه روایات را در کتابهاى شیعى وارد نمودهاند. هیچ روایت صحیح السندى از امامان(ع) نرسیده است که دوران حکومت حضرت مهدى(عج) را محدود کرده باشد. این گونه روایات علاوه بر ضعف سند، با روح آیات و محتواى روایات متواترى (که وعده دادهاند با ظهور و قیامت حضرت، زحمات انبیا به ثمر مىرسد: و جهان پر از عدل مىگردد) منافات دارد.(27)
مقام معظم رهبرى در این باره مىفرماید: «بعضى خیال مىکنند دوران ظهور حضرت بقیة اللَّه آخر دنیا است. من عرض مىکنم دوران ظهور بقیة اللَّه(ع) اوّل دنیا است. اوّل شروع حرکت انسان در صراط مستقیم است، با مانع کمتر یا بدون مانع، با سرعت بیشتر، با فراهم بودن همه امکانات براى این حرکت. اگر صراط مستقیم الهى را مثل یک جاده وسیع، مستقیم و هموارى فرض کنیم، همه انبیا در این چند هزار سال گذشته آمدهاند تا بشر را از کوره راهها به این جاده برسانند. وقتى به این جاده رسید، مسیر تندتر، عمومىتر، موفقتر، بى ضایعات یا کم ضایعاتتر خواهد بود.
دوره ظهور، دورهاى است که بشریت مىتواند نفس راحتى بکشد. مىتواند راه خدا را طى کند. مىتواند از همه استعدادهاى موجود در عالم طبیعت و در وجود انسان به شکل بهینه استفاده کند».(28)
پی نوشت ها:
1. نجم الدّین طبسى، چشم اندازى به حکومت مهدى، ص 64 - 65.
2. احقاق الحق، ج 13، ص 324.
3. نعمانى، کتاب الغیبه، ص 231؛ اثبات الهداة، ج 3، ص 539؛ بحارالانوار، ج 52، ص 353.
4. نجم الدین طبسى، همان، ص 138.
5. صافى گلپایگانى، منتخب الاثر، ص 60.
6. همان.
7. صافى، همان، ص 470 - 471.
8. نجم الدّین طبسى، همان، ص 119.
9. احقاق الحق، ج 13، ص 259؛ ینابیع المودّه، ص 487؛ بحارالانوار، ج 52، ص 378.
10. القول المختصر، ص 23، با اقتباس از: نجم الدین طبسى، همان، ص 121.
11. مجله حوزه، ویژه امام زمان، ص 134 به بعد.
12. کنز العمال، ج 14، ص 175.
13. ابن طاووس، ملاحم، ص 83.
14. لطف اللَّه صافى، منتخب الاثر، ص 607.
15. بحارالانوار، ج 75، ص 51.
16. همان، ج 51، ص 78.
17. همان، ج 52، ص 337.
18. منتخب الاثر، ص 474.
19. همان، ص 484.
20. بحارالأنوار، ج 52، ص 336.
21. مفید، اختصاص، ص 19.
22. محمد بن ابراهیم نعمانى، کتاب الغیبة، ص 331.
23. مهدى موعود، ص 767.
24. همان، ص 767.
25. نعمانى، همان، ص 332.
26. مهدى موعود، ص 851 به بعد.
27. گفتمان مهدویّت، ص 126.
موقع خواب بهمون خبر دادن که امشب رزم شب دارین ، آماده بخوابین
همه به هول و ولا افتادیم و پوتین به پا و با لباس کامل و تجهیزات نظامی خوابیدیم
تنها کسی که از رزم شب خبر نداشت حسین بود
آخه حسین خیلی زودتر از بچه ها خوابیده بود...
... نصفه های شب بود که رزم شب شروع شد
با صدای گلوله و انفجار از جا پریدیم
بچه ها مثل قرقی از چادر پریدند بیرون و به صف شدیم
خوشحال هم بودیم که با آمادگی کامل خوابیدیم و کارمون بی نقص بوده
اما یهو چشامون افتاد به پاهای بی پوتینمون
تنها کسی که پوتیش پاش بود حسین بود
از تعجب داشتیم شاخ در می آوردیم
آخه ما همه شب موقع خواب با پوتین خوابیده بودیم و حسین بی پوتین
به بچه ها نگاه کردم، داشتن از تعجب کُپ می کردند
فرمانده با عصبانیت گفت: مگه نگفتم آماده بخوابین و پوتینهاتون رو دم در چادر بذارین؟
این دفعه رو تنبیه تون می کنم که دفعه دیگه خواستون جمع باشه
زود باشین با پای برهنه دنبالم بیاین...
... صبح روز بعد همه داشتیم پاهامون رو از درد می مالیدیم
مدام هم غُر می زدیم که چطور پوتین از پاهامون در اومده
یهو حسین وارد شد و گفت: پس شما دیشب از قصد با پوتین خوابیده بودین؟
همه با حیرت نگاش کردیم و گفتیم:
آره! مگه خبر نداشتی قراره رزم شب بزنن و ما تصمیم گرفتیم آماده بخوابیم؟
حسین با تعجب گفت: نه! من خواب بودم ، نشنیدم
بچه ها که شاکی شده بودند گفتند:
راستی چرا دیشب همه ی ماها پاهامون برهنه بود جز تو؟
حسین که عقب عقب راه می رفت گفت: راستش من نصف شب بیدار شدم
خواستم برم بیرون چادر که دیدم همه با پوتین خوابیدن
گفتم حتما خسته بودین و از خستگی خوابتون برده و نتونستین پوتیناتون رو در بیارین
واسه همین اومدم ثواب کنم و آروم پوتین هاتون رو در آوردم ، بد کاری کردم؟
آه از نهاد بچه ها در نمی یومد
حسین رو گرفتیم و با یه جشن پتوی حسابی حالشو جا آوردیم